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क्या था मुग़ल साम्राज्य का पतन? जानिए मुहम्मद शाह रंगीला की कहानी

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मुग़ल साम्राज्य का इतिहास

Mughal Empire Muhammad Shah Rangeela History 

Mughal Empire Muhammad Shah Rangeela History 

भारत के मुग़ल साम्राज्य का पतन: मुग़ल साम्राज्य का पतन एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई सुलतान और दरबारी शामिल थे। मुहम्मद शाह रंगीला का नाम इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जो अपनी विलासिता और सैय्यद बंधुओं के षड्यंत्र के लिए जाने जाते हैं।

मुहम्मद शाह ने उस समय गद्दी संभाली जब साम्राज्य अंदर से कमजोर हो रहा था और सैय्यद बंधु, अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान, असली शासक बन चुके थे। धीरे-धीरे मुहम्मद शाह ने इन बंधुओं का अंत किया और स्वतंत्र शासक बने।

इस लेख में हम जानेंगे कि मुहम्मद शाह रंगीला कौन थे, उनके शासन के प्रारंभिक वर्ष कैसे थे, सैय्यद बंधुओं का प्रभाव कैसे बढ़ा, और मुहम्मद शाह ने किस प्रकार उन्हें समाप्त किया।


मुहम्मद शाह रंगीला: परिचय मुहम्मद शाह रंगीला: एक परिचय

मुहम्मद शाह का असली नाम रौशन अख्तर था। वह बहादुर शाह प्रथम के पोते थे। बहादुर शाह की मृत्यु (1712 ई.) के बाद मुग़ल साम्राज्य में संघर्ष बढ़ गया और अंततः 1719 में रौशन अख्तर को गद्दी पर बैठाया गया, जहाँ उन्हें "मुहम्मद शाह" की उपाधि मिली।

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मुहम्मद शाह का शासनकाल (1719-1748 ई.) लगभग 29 वर्षों तक चला, जो किसी भी अन्य उत्तर-मुग़ल बादशाह की तुलना में सबसे लंबा था। लेकिन इस दौरान सत्ता का अधिकांश भाग उनके हाथ में नहीं रहा। प्रारंभिक वर्षों में वह सैय्यद बंधुओं के प्रभाव में रहे। उनके रंगीन और विलासप्रिय जीवन ने उन्हें "रंगीला" उपाधि दिलाई।


सत्ता की असली ताकत: सैय्यद बंधु सत्ता की असली ताकत: सैय्यद बंधु

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सैय्यद अब्दुल्ला खान और सैय्यद हुसैन अली खान मुग़ल साम्राज्य के प्रभावशाली सेनापति थे। इन्हें "सैय्यद बंधु" कहा जाता था। इन्होंने बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु के बाद सत्ता संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इन बंधुओं ने कई मुग़ल उत्तराधिकारियों को गद्दी पर बैठाया और उतारा, जैसे: रफीउद्दरजात, शाहजहाँ द्वितीय और अंत में मुहम्मद शाह रंगीला।

उनकी शक्ति इतनी प्रभावशाली थी कि मुहम्मद शाह जैसे बादशाह भी उनके बिना कोई निर्णय नहीं ले सकते थे। धीरे-धीरे दरबार में असंतोष फैलने लगा, क्योंकि सैय्यद बंधु अपनी मर्जी से नियुक्तियाँ करते थे।


नादिर शाह का आक्रमण नादिर शाह ने किया था हमला

मुहम्मद शाह के शासनकाल में, 1739 में ईरान के शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया। नादिर शाह ने करनाल की लड़ाई में मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह को हराया। इस पराजय के बाद मुहम्मद शाह ने दिल्ली में अराजकता का सामना किया। नादिर शाह ने दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दिया और मुग़ल खजाने को लूट लिया।

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सैय्यद बंधु सैन्य पृष्ठभूमि से थे, जिससे उन्हें युद्धकला का अच्छा अनुभव था। इसी कारण मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने सैय्यद हसन अली खान को खानदेश का सूबेदार नियुक्त किया था।


मुहम्मद शाह का विद्रोह मुहम्मद शाह का असंतोष और स्वतंत्रता की इच्छा

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मुहम्मद शाह ने सैय्यद बंधुओं के प्रभाव से मुक्त होने की इच्छा जताई। दरबार में कई दरबारी और सरदार थे, जो सैय्यद बंधुओं के वर्चस्व से परेशान थे। इनमें निज़ाम-उल-मुल्क और चिन किलिच खाँ शामिल थे।

धीरे-धीरे मुहम्मद शाह के भीतर विद्रोह की भावना जागृत होने लगी। उसे समझ में आया कि यदि वह सत्ता में स्थायित्व चाहता है, तो पहले सैय्यद बंधुओं का अंत करना होगा।


षड्यंत्र की तैयारी षड्यंत्र की तैयारी

सैय्यद बंधुओं को हटाने के लिए मुहम्मद शाह ने कई योजनाएँ बनाई। उसने अपने वफादार सरदारों का एक गुप्त गुट बनाया, जिसमें निज़ाम-उल-मुल्क, चिन किलिच खाँ और अन्य प्रमुख सरदार शामिल थे।

मुहम्मद शाह ने पहले हुसैन अली खान की हत्या करने का निर्णय लिया। इसके लिए एक पठान युवक हैदर बेग को चुना गया, जिसे हुसैन अली खान के निकट भेजा गया।


सैय्यद हुसैन अली खान की हत्या सैय्यद हुसैन अली खान की हत्या

1 अक्टूबर 1720 को, जब सैय्यद हुसैन अली खान दरबार से लौट रहे थे, हैदर बेग ने उन पर हमला किया और उन्हें मार डाला।

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हुसैन अली खान की मृत्यु के बाद, सैय्यद अब्दुल्ला खान ने विद्रोह करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी शक्ति पहले जैसी नहीं रही।


सैय्यद अब्दुल्ला खान का अंत सैय्यद अब्दुल्ला खान का अंत

हुसैन अली खान की हत्या के बाद, सैय्यद अब्दुल्ला खान ने आगरा में विद्रोह किया। वह एक विशाल सेना लेकर दिल्ली की ओर बढ़ा, लेकिन मुहम्मद शाह के वफादार सेनापतियों ने उसे रोक लिया।

1720 के अंत तक, सैय्यद अब्दुल्ला खान को आत्मसमर्पण करना पड़ा और उसे कैद कर लिया गया। इस प्रकार, मुहम्मद शाह ने स्वतंत्र शासक के रूप में शासन करना शुरू किया।


सैय्यद बंधुओं के पतन का महत्व सैय्यद बंधुओं के पतन का महत्व

सैय्यद बंधुओं का अंत मुग़ल इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इससे मुहम्मद शाह को वास्तविक सत्ता मिली, लेकिन साम्राज्य की अंतर्निहित कमजोरियाँ भी उजागर हुईं।

हालाँकि मुहम्मद शाह ने स्वतंत्र शासन की शुरुआत की, लेकिन वह जल्द ही विलासिता में डूब गए। नतीजतन, मुग़ल साम्राज्य और कमजोर हो गया और विदेशी आक्रांताओं का शिकार बन गया।


मुहम्मद शाह रंगीला का शासन और चरित्र मुहम्मद शाह रंगीला का शासन और चरित्र

मुहम्मद शाह का शासन सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। संगीत, नृत्य और चित्रकला का विकास हुआ, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से वह विफल साबित हुए। 1748 में उनकी मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य तेजी से पतन की ओर बढ़ा।

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मुहम्मद शाह रंगीला एक विरोधाभासी शख्सियत के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने सैय्यद बंधुओं का अंत किया, लेकिन स्वयं सत्ता को सुदृढ़ करने में असफल रहे। उनका शासनकाल कला और संस्कृति का स्वर्णिम युग था, किंतु राजनीतिक दृष्टि से यह मुग़ल साम्राज्य के पतन की शुरुआत साबित हुआ।


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